हर पल की तुम बात न पूछो
कैसे गुजरी रात न पूछो
बाहर सब कुछ सूखा-सूखा
अन्दर की बरसात न पूछो
दुनिया से तो जीत रहा हूँ
खुद से खुद की बात न पूछो
जिस को सुन के पछताओगे
तुम मुझसे वो बात न पूछो
साहिल पे ही डूब गए हो
कैसे थे हालात न पूछो
मिलता है '' इरशाद'' सभी से
उस से उसकी जात न पूछो
इरशाद भाई
जवाब देंहटाएंस्वागत है … आख़िरकार आपने पढ़ने के लिए कुछ लगाया तो सही ।
बाहर सब कुछ सूखा-सूखा
अन्दर की बरसात न पूछो
बहुत अच्छा , भाव भरा शे'र है ।
लेकिन…
अगला शे'र शायद यूं होना चाहिए था
दुनिया से तो जीत रहा हूं
ख़ुद से ख़ुद की मात न पूछो
आपने शायद भूल से लिख दिया है
खुद से खुद की बात न पूछो … कोई बात नहीं , सुधार ले ।
पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी है ।
मुबारकबाद …
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , आइएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
जिस को सुन के पछताओगे
जवाब देंहटाएंतुम मुझसे वो बात न पूछो
आज अचानक इस ब्लॉग पर नज़र पड़ी तो महसूस हुआ कि और पहले आना था ,बहरहाल सादा से अल्फ़ाज़ में अपनी बात कहने का हुनर दिखाई दे रहा है इस ग़ज़ल में,
बहुत खूब!